संस्थापक दल

सत्येंद्र तोमर

एक ग्रामीण कृषि प्रधान परिवार में जन्म पाकर यद्यपि संसाधनों का अधिकतर अभाव था तथापि मेरा बाल्यकाल प्रकृति के सानिध्य में बीता । माँ सरस्वती की कृपा से तीक्ष्ण बुद्धि के कारण मैं बाल्यकाल से ही मेधावी छात्र रहा । अपने गाँव से सातवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत मेरे आग्रह पर पिता जी ने मेरा प्रवेश सहारनपुर में राजकीय विद्यालय में करा दिया था । वहीं से बारहवीं कक्षा और विज्ञान विषयों में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की । तत्पश्चात, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की से अनुप्रयुक्त गणित में स्नातकोत्तर (अधिस्नातक) परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात मैंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से अनुप्रयुक्त गणित में विद्या वाचस्पति की उपाधि प्राप्त की । अपना अध्ययन समाप्त करते ही मुझे वर्ष 2001 में नीदरलैंड (यूरोप) में कार्य करने और उच्च व उन्नत गणित एवं विज्ञान सीखने का अवसर प्राप्त हुआ । वहाँ तीन वर्ष कार्य करने के उपरांत मुझे ऑस्ट्रिया में वरिष्ठ वैज्ञानिक पद पर उच्च व उन्नत गणित में कार्य करने का अवसर मिला । मैंने वहाँ लगभग नौ वर्ष कार्य किया और 2 विद्यार्थियों को विद्या वाचस्पति की उपाधि के लिए मार्गदर्शन दिया । इसी मध्यांह लगभग छः मास के लिए मैंने जर्मनी में प्राध्यापक पद पर भी कार्य किया । तत्पश्चात, वर्ष 2015 से मैं विभिन्न पदों पर इंग्लैंड और लक्ज़मबर्ग में कार्यरत रहा और विद्या वाचस्पति व वरिष्ठ विद्यार्थियों को प्रशिक्षण व मार्गदर्शन दिया । इसी के साथ, 2018 - 2019 में मैंने स्लोवेनिया में सूचना प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयुक्त गणित अनुसंधान केंद्र में अध्यक्ष पद का भी कार्यभार संभाला । यूरोप आने के बाद से मैंने लगभग 25 राष्ट्रों में यात्रा की है और अपने अनुसंधान कार्य पर लगभग 50 व्याख्यान अंतर्राष्ट्रीय मंचों व सम्मेलनों में दिए हैं ।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की के जीवन काल से ही मैं छात्र क्रियाकलापों में सक्रिय भाग लेता था और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में छात्र संघ के कई पदों का उत्तरदायित्व भी वहन किया था । इन सब उत्तरदायित्वों से जीवन का वृहत्तर अनुभव प्राप्त हुआ और हमारे समाज के बहुतेरे आयामों को गहनता से जान पाया । जीवन के भिन्न भिन्न अवसरों पर भारतीय समाज के उत्थान के लिए सक्रिय योगदान देने की इच्छा उठी पर पारिवारिक उत्तरदायित्वों से अधिक समय न निकाल सका । लेकिन सृष्टि को मेरा सामान्य जीवन स्वीकार नही था । इसलिए वर्ष 2014 में घटी कुछ घटनाओं ने मेरा ध्यान मात्र व्यक्तिगत विकास की अपेक्षा हमारे समाज के विकास की ओर अग्रसर किया । तब से मैंने समाज में बढ़ रही समस्याओं पर गहन चिंतन मनन किया और अपने इतिहास का अध्ययन किया । फलस्वरूप, मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि हमारे समाज की उन्नति व विकास में ही मेरी मुक्ति का मार्ग है । अतः, शास्त्रोक़्त विधि अनुसार, मैंने शनैः शनैः वानप्रस्थ आश्रम की ओर जाने का संकल्प लिया है । यह सृष्टि की शुभ शक्तियों व माँ भारती की कृपा है कि मुझे इसी उचित समय पर मेरे जैसे विचारधारा वाले योग्य व समर्पित सहयोगी प्राप्त हुए और हमने वज्रकुल संस्था की स्थापना 21.08.2020 को की । यह भी प्रकृति का विचित्र विधान है कि 22.08.2020 को ही मेरे पिता का देहांत हो गया । संभवतः मुझे यही आशीर्वाद देने के लिए उनकी आत्मा ने पिछले लगभग दो वर्ष से पर-निर्भर व्याधिग्रस्त देह नही त्यागी थी, और हमारी संस्था की आधिकारिक रूप से स्थापना होते ही उसने अयोग्य देह को त्याग दिया ।
जय माँ भारती


नीरज तोमर

मेरा जन्म एक कृषक परिवार में हुआ तथा जीवन का प्रारंभिक भाग अधिकांशतः सहारनपुर में व्यतीत हुआ । हमारा पूरा परिवार सहारनपुर में रहता था तथापि मेरा हृदय हमेशा मुझे मेरे गाँव की ओर आकर्षित करता था । स्नातक परीक्षा विज्ञान विषयों के साथ सहारनपुर से पूर्ण करने के उपरांत, कुछ पारिवारिक परिस्थितियों के कारण, मेरी युवावस्था का अधिकांश भाग मेरे गाँव में ही व्यतीत हुआ । इसके पश्चात, क्योंकि हृदय में हमेशा से ही हमारी मातृभूमि की सेवा करने का उत्साह था, मैं भारतीय सेना में सम्मिलित होने के लिए संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी हेतु देहरादून चला गया । यद्यपि मैं सफल न हो सका, लेकिन इस असफलता ने मेरे संकल्प तथा मन में मातृभूमि की सेवा के भाव को और अधिक दृढ़ कर दिया ।
उसके पश्चात मैंने कुछ वर्ष बैंकिंग क्षेत्र में कार्य किया तथा तत्पश्चात अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया । जीवन परिवार के साथ सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था परन्तु मेरे हृदय में सदैव ही हमारी मातृभूमि के प्रति कुछ करने की आकांक्षा व्यथित करती रही । ये आकांक्षा सदैव ही एक अच्छे नेतृत्व तथा दल के अभाव, और कुछ अन्य लौकिक कार्यों के कारण से दब जाती थी । परन्तु अब ईश्वर की कृपा तथा वज्रकुल के माध्यम से जब माँ भारती ने एक अच्छे नेतृत्व तथा दल के साथ मेरा आह्वान किया है तो मुझे अत्यंत गर्व की अनुभूति हो रही है । अतः मैं अपनी ओर से इस यज्ञ में हर संभव आहुति देने के लिए तत्पर हूँ । हमारी मातृभूमि के गौरव को पुनर्स्थापित करने में यदि मैं लेशमात्र भी सहयोग दे पाया तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझूँगा । अब वज्रकुल के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पूर्ण सहयोग व योगदान देना ही मेरा एक मात्र उद्देश्य होगा ।
जय माँ भारती


राजीव तोमर

मैंने अपनी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात शिक्षा परामर्शदाता के रूप में 8 वर्ष तक कार्य किया । अभी मुझे वज्रकुल के साथ जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ है जो मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है । किसी भी सफल व्यक्ति को समाज में अपना परिचय देने की आवश्यकता नही होती, उसकी सफलता स्वयं उसका परिचय देती है । आवश्यकता है ज्ञान और परिश्रम द्वारा सफलता की ओर अग्रसर होने की । मेरे अनुसार लगातार पवित्र विचार रखते हुए बुरे संस्कार तथा बुरी आदतों से मुक्ति पाकर श्रेष्ठ जीवन जीने की ओर अग्रसर होना ही एक मात्र समाधान है । एक श्रेष्ठ व्यक्ति अपने ज्ञान और विचारों से सदैव प्रगति करता है, और समाज में सम्मान पाता है । वज्रकुल के ध्येय व उद्देश्यों की पवित्रता ही मेरा वज्रकुल के साथ जुड़ने का एक मात्र कारण है । मैं वज्रकुल के संविधान का सदैव पालन करते हुए इसकी शिक्षाओं का समाज में प्रसार व प्रचार करने में पूर्ण सहयोग व योगदान दूँगा ।
जय माँ भारती


श्रीमती आशिम शर्मा

● मेरा जन्म पंजाब राज्य के गुरदासपुर जनपद में हुआ था । वीर भगत सिंह व स्वामी विवेकानंद का मेरे जीवन व लक्ष्यों पर बहुत प्रभाव पड़ा । मेरी प्रारंभिक शिक्षा चंडीगढ़ से हुई, और मैंने पंजाब विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर व शिक्षा निष्णात की परीक्षा उत्तीर्ण की । मैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अर्हता प्राप्त शिक्षक भी हूँ, और कई मंचों पर इतिहास और शिक्षकों की शिक्षा पर विचार-विमर्श कर चुकी हूं । भूतकाल में मैंने समाचार पत्रों में कश्मीर विषय पर संपादकीय भी लिखे हैं ।
● राष्ट्र की सेवा करना हमेशा मेरे जीवन का ढाँचा रहा है । मेरा दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्रीय सेवा के लिए समय की प्रतीक्षा नही की जाती अपितु व्यक्ति जो भी समय निकाल सके, वह मातृभूमि की सेवा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए । मैंने एक शिक्षक के रूप में सेना सार्वजनिक विद्यालय (आर्मी पब्लिक स्कूल) में कार्य किया, और वास्तविक नायकों (सैनिकों) के बालकों को पढ़ाया । विद्यालय में 6 वर्ष तक पढ़ाने के पश्चात मैंने अध्यापक के रूप में सेना महाविद्यालय (आर्मी कॉलेज) में 4 वर्ष तक अध्यापन किया । अब मैं एक गृहिणी हूं, और अपने परिवार की देखभाल कर रही हूं । मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय सदस्या भी हूँ ।
● मेरे चहुँओर राष्ट्रभक्ति का वातावरण रहा है । मेरे दादा और मेरे तीन चाचाओं ने सशस्त्र बलों की सेवा की है । मेरे पति मेरी सभी प्रेरणाओं के प्रमुख स्रोत हैं। भारतीय सशस्त्र बलों में एक चिकित्सक के रूप में उनके पास सैनिक और चिकित्सक की दोहरी भूमिका में राष्ट्र की सेवा करने का अनूठा अवसर है । उनकी सेवा के लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया है । राष्ट्रीय सेवा के लिए उनके उत्साह और दृढ़ संकल्प ने मुझे सदैव ही प्रेरित किया है ।
वज्रकुल मेरे जीवनदर्शन को परिभाषित करता है, और मैं इस सनातन शक्ति का एक भाग होने पर सम्मानित हूँ । मैं वज्रकुल के संविधान का सदैव पालन करूँगी, और अपने राष्ट्र की सेवा करने हेतु अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के साथ कार्य करूँगी ।
जय माँ भारती